प्रिय दोस्तों, आज के इस लेख में हम साल के पहले त्यौहार लोहड़ी के बारे में जानेंगे, आप इस लेख को Lohri Festival Essay के तौर पर भी ध्यान में रख सकते है।
स्कूल और कॉलेज के बच्चे इस लेख में से मुख्य पंक्तियों को चुन कर आने वाले लोहड़ी 2020 पर अपने विद्यालय में इसे याद कर के बोल सकते हैं, तो आइये दोस्तों शुरू करते हैं.
Essay on Lohri Festival in Hindi Language
भारत एक ऐसा देश है जिसमे अत्यधिक त्यौहार मनाये जाते हैं, और कई जगह तो एक ही त्यौहार को कई नाम से भी जाना जाता है| आज हम भारत के मुख्य त्योहारों में से एक की इस लेख में विशेष चर्चा करते हैं.
लोहड़ी पर हिंदी निबंध
यह त्यौहार पंजाबियों तथा हरयानी लोगो का प्रमुख त्यौहार माना जाता है| यह त्यौहार मकर संक्रान्ति के एक दिन पहले यानी की 13 जनवरी को बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है.
मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर इस त्यौहार का उल्लास रहता है| रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर, लकड़ी एक्कठी करके आग जलाते हैं और फिर उसके किनारे घेरा बना कर बैठते हैं.
आधुनिक युग में अब यह लोहड़ी का त्यौहार सिर्फ पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू काश्मीर और हिमांचल में ही नहीं अपितु बंगाल तथा उड़िया लोगो द्वारा भी मनाया जा रहा हैं.
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लोहड़ी का त्यौहार – परिचय
चलिए जानते हैं की आखिर इस त्यौहार का नाम लोहड़ी ही क्यों पड़ा?
लोहड़ी हिन्दी कैलेंडर के हिसाब से पौष के अंतिम दिन, सूर्यास्त के बाद (माघ संक्रांति से पहली रात) को यह पर्व मनाया जाता है| यह त्यौहार प्रतिवर्ष 13 जनवरी को ही पड़ता है| यह त्यौहार मुख्यत: पंजाब का पर्व है.
प्राय: घर में नाव वधू और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है| लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था| यह शब्द तिल तथा रोडी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया.
इस त्यौहार में शब्द – लोहड़ी की पूजा के समय व्यवहृत होने वाली वस्तुओं के द्योतक वर्णों का समुच्चय जान पड़ता है, जिसमें ल (लकड़ी) + ओह (गोहा = सूखे उपले) + ड़ी (रेवड़ी) = ‘लोहड़ी’ के प्रतीक हैं.
ल (लकड़ी) +ओह (गोहा = सूखे उपले) +ड़ी (रेवड़ी) = ‘लोहड़ी’
श्वतुर्यज्ञ का अनुष्ठान मकर संक्रांति पर होता था, संभवत: लोहड़ी उसी का अवशेष है.
दोस्तों उत्तरी भारत की सर्दी पुरे भारत में चर्चित है, (जनवरी) पूस-माघ की कड़कड़ाती सर्दी से बचने के लिए आग भी सहायक सिद्ध होती है -यही व्यावहारिक आवश्यकता “लोहड़ी” को मौसमी पर्व का स्थान देती है.
लोहरी का इतिहास – History Of Lohri Festival In Hindi
लोहड़ी त्यौहार से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं| दक्ष प्रजापति की पुत्री सती के योगाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है.
यज्ञ के समय अपने जामाता शिवजी का भाग न निकालने का दक्ष प्रजापति का प्रायश्चित्त ही इसमें दिखाई पड़ता है.
यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है, इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है| इस प्रकार यह त्योहार पूरे उत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है.
Information About Lohri Festival in Hindi Font
क्या आप जानते हैं की लोहरी का त्यौहार विवाहित बेटियों के लिए खास है?
इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से ‘त्योहार’ पर विशेष चीज़े (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी, फलादि, इत्यादि) भेजी जाती है| उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में ‘खिचड़वार’ और दक्षिण भारत के ‘पोंगल’ पर भी-जो ‘लोहड़ी’ के समीप ही मनाए जाते हैं – बेटियों को भेंट जाती है.
उत्तरी भारत में किस तरह से मनाया जाता है लोहरी का त्यौहार
लोहड़ी के त्यौहार से 20-24 दिन पहले ही बालक एवं बालिकाएँ ‘लोहड़ी’ के लोकगीत गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं| संचित सामग्री से चौराहे या मुहल्ले के किसी खुले स्थान पर आग जलाई जाती है.
मुहल्ले या गाँव भर के लोग अग्नि के चारों ओर आसन जमा लेते हैं| घर और व्यवसाय के कामकाज से निपटकर प्रत्येक परिवार अग्नि की परिक्रमा करता है.
लोहड़ी के दिन या उससे दो चार दिन पूर्व बालक बालिकाएँ बाजारों में दुकानदारों तथा पथिकों से ‘मोहमाया’ या महामाई (लोहड़ी का ही दूसरा नाम) के पैसे माँगते हैं, इनसे लकड़ी एवं रेवड़ी खरीदकर सामूहिक लोहड़ी में प्रयुक्त करते हैं.
लोहड़ी का प्रसाद
रेवड़ी (और कहीं कहीं मक्की के भुने दाने) अग्नि की भेंट किए जाते हैं तथा ये ही चीजें प्रसाद के रूप में सभी उपस्थित लोगों को बाँटी जाती हैं.
घर लौटते समय ‘लोहड़ी’ में से दो चार दहकते कोयले, प्रसाद के रूप में, घर पर लाने की प्रथा भी है|
जिन परिवारों में लड़के का विवाह होता है अथवा जिन्हें पुत्र प्राप्ति होती है, उनसे पैसे लेकर मुहल्ले या गाँव भर में बच्चे ही बराबर-बराबर रेवड़ी बाटे जाते हैं.
बच्चो द्वारा की जाने वाली शरारते लोहरी के त्यौहार पर
शहरों के शरारती लड़के दूसरे मुहल्लों में जाकर लोहड़ी से जलती हुई लकड़ी उठाकर अपने मुहल्ले की लोहड़ी में डाल देते हैं.
यह लोहड़ी व्याहना कहलाता है| मँहगाई के कारण पर्याप्त लकड़ी और उपलों के अभाव में दुकानों के बाहर पड़ी लकड़ी की चीजें उठाकर जला देने की शरारतें भी चल पड़ी हैं.
लोहड़ी का त्यौहार और दुल्ला भट्टी की कहानी
लोहड़ी को दुल्ला भट्टी की एक कहानी से भी जोड़ा जाता हैं| लोहड़ी की सभी गानों को दुल्ला भट्टी से ही जुड़ा तथा यह भी कह सकते हैं कि लोहड़ी के गानों का केंद्र बिंदु दुल्ला भट्टी को ही बनाया जाता हैं.
दुल्ला भट्टी कौन है?
दुल्ला भट्टी मुग़ल शासक अकबर के समय में पंजाब में रहता था| उसे पंजाब के नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया था.
उस समय संदल बार के जगह पर लड़कियों को गुलामी के लिए बल पूर्वक अमीर लोगों को बेच जाता था जिसे दुल्ला भट्टी ने एक योजना के तहत लड़कियों को न की मुक्त ही करवाया बल्कि उनकी शादी की हिन्दू लडको से करवाई और उनके शादी के सभी व्यवस्था भी करवाई.
दुल्ला भट्टी एक विद्रोही था और जिसकी वंशवली भट्टी राजपूत थे| उसके पूर्वज पिंडी भट्टियों के शासक थे जो की संदल बार में था अब संदल बार पकिस्तान में स्थित हैं| वह सभी पंजाबियों का नायक था.
How To Celebrate Lohri Festival in Hindi
लोहरी कैसे मनाये?
लोहड़ी पर्व और मूंगफली खाकर, गाने गाकर और परिवार और प्रियजनों के साथ एक आग की गर्माहट को साझा करने का एक खुशी का समय है।
लोहड़ी से एक हफ्ते पहले, बच्चे जलाने के लिए लकड़ी इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं, ऐसे लॉग का शिकार करते हैं जो अच्छी तरह से जल जाएगा।
अच्छे स्वभाव की प्रतिद्वंद्विता की भावना समुदाय को एक साथ बांधती है और हर कोई अपने पड़ोस में सबसे बड़ी और सबसे भव्य आग बनाने में गर्व महसूस करता है।
लोहड़ी की शाम में, अलाव की आग तेज़ होती है और इस सर्द रात में लोगों को गर्मी से घेर देती है। लकड़ी की दरारें और जलती हैं और लोग चारों ओर इकट्ठा होते हैं, उनके चेहरे लाल और सोने से चमकते हैं।
लोहड़ी मूल रूप से सूर्य देव को समर्पित त्योहार है। जैसे-जैसे सूर्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है, नया विन्यास धरती मां को गर्माहट प्रदान करता है। वे बीज जो गर्मी की चाह में सुप्त रहते हैं, अब अंकुरित होते हैं।
लोहड़ी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है जो पूरे समुदाय को एक साथ लाता है, प्रत्येक परिवार तिल और गुड़, मूंगफली, तिलचोवाली और कई अन्य स्वादिष्ट घर से बने व्यंजनों में मिठाई का योगदान देता है।
गुरु ग्रंथ साहिब महीने के इस शुभ समय की प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि जो लोग आग लगाने से पहले ध्यान करते हैं वे धन्य होंगे।
लोहड़ी, जो सर्दियों में उच्चतम बिंदु को चिह्नित करता है, विशेष रूप से नवजात शिशुओं के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है जो आग के चारों ओर ले जाते हैं।
वे समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं यहां तक कि वे जलते हुए अंगारों को तिल (गिंगेली), मूंगफली (मूंगफली) और चिरावा (पीटा चावल) का प्रसाद बनाते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक अच्छा लोहड़ी पूरे वर्ष के लिए स्वर सेट करता है – जितना अधिक खुशी और भरपूर अवसर होगा, उतना ही शांति और समृद्धि होगी।
कुछ लोगों का मानना था कि होलिका और लोहड़ी बहनें थीं। जबकि पूर्व आग में गायब हो गया, लोहड़ी बच गया और जीवित रहा।
लोहड़ी से जुड़े अनुष्ठान और उत्सव केवल प्रकृति के लिए एक सामान्य धन्यवाद के प्रतीक हैं, जैसा कि सूर्य देव ने दर्शाया है, और इस प्रक्रिया में, उत्सव परिवार के पुनर्मिलन और मिलनसार होने के साथ भाईचारे, एकता और कृतज्ञता की भावना का प्रतीक है, जिससे बहुत सारी खुशियाँ पैदा होती हैं।
सद्भावना और जयकार। यह एक दिन भी है जब महिलाओं और बच्चों का ध्यान जाता है। किसी दुल्हन की पहली लोहड़ी बेहद महत्वपूर्ण होती है। एक नवजात शिशु की पहली लोहड़ी, चाहे वह लड़की हो या लड़का, समान रूप से महत्वपूर्ण है। बच्चे घर-घर जाकर गायन करते हैं और लोहड़ी का प्रसाद मांगते हैं।
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