आज के इस लेख में हम जानेगे ईसाई धर्म के परमात्मा ईसा मसीह के बारे में| तो आइये शुरू करे-
यीशु मसीह या जीज़स क्राइस्ट ईसाई धर्म के संवर्धक हैं। ईसाई धर्म के लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर का पुत्र मानते हैं| ईसा मसीह की जीवनी और उपदेश बाइबिल के नये नियम में दिये गये हैं.
क्या आप जानते हैं की बाइबिल क्या है और इसमें क्या लिखा है या हम इससे क्या सीखते हैं?
हम कह सकते हैं की बाइबिल ईश्वरीय प्रेरणा तथा मानवीय परिश्रम दोनों का सम्मिलित परिणाम है, जिसका वर्णन एक किताब के माध्यम से लोगो तक पहुचाया जाता है.
इसमें हर उस प्रशन का आपको उत्तर मिलेगा जो कभी ना कभी हर एक इन्सान के दिमाग में उठते है| कुछ प्रशन हैं-
- मरने पर हमारा क्या होता है?
- हम अपने परिवार को सुखी कैसे बना सकते हैं?
- परमेश्वर के बारे में सच्चाई क्या है?
- पृथ्वी के लिए परमेश्वर का मकसद क्या है?
- परमेश्वर का राज्य क्या है?
- परमेश्वर ने दुःख-तकलीफें क्यों रहने दी हैं?
इससे मिलते जुलते और भी कई सवाल है जिसका जवाब बाइबिल में लिखा है| बाइबिल के दो भाग हैं.
- पूर्वविधान (ओल्ड टेस्टामैंट)
- नवविधान (न्यू टेस्टामेंट)
इसे भी पढ़े : यीशु मसीह की कहानी और उनका जीवन परिचय
ईसा मसीह कौन थे ?
यीशु मसीह की जीवनी और उनके ज़िन्दगी में उन्होंने जो संगर्ष किये वो सभी बाइबिल के दुसरे भाग यानिकी नवविधान में हैं|
दोस्तों अब हम थोडा गौर फरमाते हैं ईसाई धर्म के भगवान यीशु मसीह जी की जीवनी के बारे में-
कहा जाता है की यीशु ने एक मुस्लिम धर्म के परिवार में जन्म लिया था और ज्ञान बाटते-बाटते उन्होंने नये धर्म यानी की इसाई धर्म का निर्माण किया.
ईसा मसीह का जन्म कब हुआ और उनके बचपन की कहानी
बाइबिल के अनुसार यीशु की माता जी का नाम मरियम गलीलिया था| उनकी सगाई दाऊद के राजवंशी यूसुफ नामक एक बढ़ई से हुई|
यीशु की माँ शादी से पहले ही ईश्वरीय प्रभाव से गर्भवती हो गईं, ठीक उसी तरह जिस तरह पांडवो की माता कुंती ने अपने 4 पुत्रो को जन्म दिया था|
यह सब जानने के बाद यीशु के पिता ने पहले तो शादी से इनकार कर दिया परन्तु इश्वर का संकेत पा कर उन्होंने मरियम गलीलिया को अपनाया और फिर शादी भी की|
शादी के कुछ समय बाद वो दोनों बेथलेहेम नामक नगरी में जा कर अपना जीवन व्यतीत करने लगे| यीशु का जन्म भी वही हुआ|
जब यीशु बारह वर्ष के हुए तो उन्होंने अपने पिता युसूफ का रोजगार सिख कर अपने पिता का हाथ बटाने लगे|
बाइबिल में यीशु के 13 से 29 वर्ष तक उन्होंने क्या किया इसका कोई भी जिक्र नहीं है|
जब यीशु 30 वर्ष की उम्र में थे तब उन्होंने यूहन्ना से पानी में डुबकी (दीक्षा) ली। डुबकी के बाद यीशु पर पवित्र आत्मा आई|
जब उनकी दीक्षा पूरी हो गई और उनकी आत्मा पवित्र हो गई तो उन्होंने 40 दिन का उपवास किया और फिर लोगों को शिक्षा देने लगे|
ये था उनका जन्म और उनका बचपन कैसे व्यतित उसका वर्णन, अब हम जानते हैं की कैसे वो एक आम आदमी जिसका नाम यीशु हुआ करता था वो यीशु मसीह कैसे बने?
यीशु से यीशु मसीह का सफ़र
जब यीशु तीस वर्ष के हुए तो उन्होंने इजराइल की जनता को यहूदी धर्म का नया पाठ पढ़ना शुरू किया|
आइये जाने की यहूदी धर्म के पाठ पढ़ते समय यीशु ने इस्राइल की जनता को क्या-क्या बताया-
- ईश्वर (जो केवल एक ही है) साक्षात प्रेमरूप है|
- यहूदी ईश्वर की परमप्रिय नस्ल नहीं है, ईश्वर सभी मुल्कों को एक समान प्यार करता है|
- इंसान को अपने क्रोध में किसी से बदला नहीं लेना चाहिए बल्कि उनको क्षमा करना सीखना चाहिए|
- यीशु ने स्पष्ट रूप से इस्राइल की जनता को कहा कि वे ही ईश्वर के ही पुत्र हैं, वे ही मसीह हैं और स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग हैं|
- यीशु ने क़यामत के दिन अपना ख़ास ज़ोर दिया क्योंकि उनका कहना था की उसी वक़्त स्वर्ग या नर्क इंसानी आत्मा को मिलता है|
इन सभी पाठ के साथ-साथ उन्होंने इस्राइल की जनता के सामने कई चमत्कार भी किए जिससे वहा की जनता उनकी बातो को पसंद करने लगी.
यीशु के द्वारा किये गए संघर्ष
यहूदियों के धर्मगुरुओं को यीशु में मसीहा जैसा कुछ खास नहीं दिखा| वो सब यीशु का भारी विरोध करने लगे|
यहूदियों के धर्मगुरुओं को अपने कर्मकाण्डों से अत्यधिक प्रेम था| उनको यीशु द्वारा खुद को ईश्वरपुत्र बताने की बात हज़म नहीं हुई|
इसलिए उन्होंने यीशु की शिकायत उस वक्त के रोमन गवर्नर पिलातुस को कर दी| रोमनों को हमेशा यहूदी क्रान्ति का डर लगा रहता था इसलिए उन्होंने धर्मगुरुओं को प्रसन्न करने के लिए ईसा को क्रूस की दर्दनाक सज़ा सुनाई.
बाइबिल के मुताबिक जानिये यीशु को कितनी पीड़ा जनक मृत्यु मिली|
- रोमी के सैनिकों ने उनको कोड़ों से मारा|
- उनके सर पर कांटों का बनाया हुआ ताज सजाया|
- उनके ऊपर थूका|
- उनके पीठ पर उनका अपना ही क्रूस उठवाके, रोमियों ने उन्हें गल्गता तक लिया, जहां पर उन्हें क्रूस पर लटकाना था|
- उन्हें मदिरा और पित्त का मिश्रण पेश किया गया था| जिसे पिने से उन्होंने नकारा भी था|
उस युग में यह मदिरा और पित्त का मिश्रण मृत्युदंड की अत्यंत दर्द को कम करने के लिए सभी को दिया जाता था।
बाइबिल के हिसाब से यीशु को दो चोरो के बीच क्रूस पर लटकाया गया था| मृत्यु के ठीक तीन दिन बाद यीशु ने वापिस जी उठे और उसके 40 दिन बाद वो सीधे स्वर्ग चले गए.
यीशु के 12 शिष्यों ने ही उनके द्वारा निर्माण किये नये धर्म को सभी जगह फैलाया| आगे चल कर यही धर्म ईसाई धर्म के नाम से जाना जाने लगा|
ईसाइयों का मानना है कि क्रूस पर मरते समय यीशु मसीह ने हर एक इन्सान के पाप खुद पर ले लिए थे| इसलिए जो भी यीशु के पढाये पाठ में विश्वास करेगा, उसी को स्वर्ग मिलेगा|
ईसा मसीह की मृत्यु : | c. 30/33 AD (उम्र 33–36) |
- यीशु मसीह के गाने
- क्रिसमस पर निबंध (बड़ा दिन की कहानी)
- क्रिसमस ट्री का महत्व, क्रिसमस ट्री के 5 अनमोल गुण
दोस्तों ये था ईसा मसीह का जीवन परिचय, संगर्ष और उनकी मृत्यु का कारण|
आज मै आपको एक बात बताना चाहता हूँ की आप तक मै जो भी जानकारी पहुचता हूँ उसे लिखने से पहले उस टॉपिक में मेरी नॉलेज भी काफी कम रहता है, और आप तक मै बिलकुल सही और पूरी नॉलेज पहुचाना चाहता हूँ, और पहुचाता भी हूँ| और आप तक नॉलेज पहुचाने में मेरी खुद की भी नॉलेज में काफी बढ़ोतरी होती है|
अगर आप की भी नॉलेज मेरे आर्टिकल को पढ़ के बढती है, तो इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया जैसे की फेसबुक, ट्विटर, गूगल+ और व्हाट्सएप्प पर शेयर जरुर करें.
अगर आपको इस लेख से सम्बन्धित कुछ भी पूछना है तो आप कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हो पर इस लेख को शेयर करके हमको धन्यवाद बोल सकते हो| 🙂
Yeshu mashi ne apni life me bohot dukh uthaye unhone hamare liye apna balidan Diya to ese parmeshwar par viswas karna galat hai? Agar wo sahi the to aaj Hindu samaj aur Muslim samaj unhe galat kyu kehta hai?
Brother Jesus did not born in family of Muslim read Bible and give good teaching.