गणेश चतुर्थी : एक बार गणेश जी का जन्मदिन था उन्हें एक भक्त के घर रात में भोजन के लिए बुलाया गया| भगवान गणेश जी ने काफी भोजन खाया.
वह चूहे पर बैठ कर वापस लौट रहे थे तभी अचानक एक सांप ने उनका रास्ता काट दिया| सांप को देखकर चूहा डर गया और वहा से भाग गया और गणेश जी नीचे गिर गए.
जब गणेश जी नीचे गिरे तो उनका भोजन से भरा हुआ पेट फट गया| यह देखकर चाँद जोर-जोर से हसने लगा.
गणेश जी को बहुत अपमान महसूस हुआ गुस्से में उन्होंने सांप को मार दिया और अपने पेट के चारो तरफ से बाँध लिया और इसके बाद उन्होंने चाँद का पिछा किया.
चाँद अपनी जान बचाने के लिए भागा और गणेश जी से बचने में सफल हो गया| वह अपने महल में जा कर छुप गया.
गणेश जी जल्दी ही वहा पहुँच गये और महल के बाहर चौकीदारी के लिए खड़े हो गये और बोले अब तुम कहाँ जाओगे अभी नहीं तो कभी तो बाहर आओगे और तब मैं तुमसे बदला लूँगा.
बहुत अँधेरा हो गया पर चाँद बाहर नहीं आया इससे धरती लोक में उथल-पुथल मच गई. सभी देवता गणेश जी के पास गये और चाँद को माफ़ करने के लिए कहने लगे.
किसी तरह गणेश जी मान गये और उन्होंने चाँद को बाहर आने दिया लेकिन चाँद को श्राप देते हुए कहा तुम एक चोर की तरह घर में छिपे हो इसलिए कोई भी यदि तुम्हे मेरे जन्मदिन पर देखेगा तो उस पर चोरी का इल्जाम लगेगा.
इसी कारण लोग गणेश चतुर्थी के दिन चाँद को नहीं देखते. इसी कारण भगवान श्री कृष्णा पर स्यामन्तक हीरा चुराने का इलजाम लगा था.
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गणेश चतुर्थी की कहानी – The Story Behind Ganesh Chaturthi Hindi
एक बार महादेव जी माता पार्वती जी सहित नर्मदा के तट पर गये वहां एक सुन्दर स्थान में पार्वती जी ने महादेव जी से चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की तब शिव जी ने कहा हमारी हार-जीत का साक्षी कौन होगा?
तभी पार्वती जी ने घास के कुछ तिनके बटोर कर एक घांस का पुतला बनाया और उसमे प्राण प्रतिष्ठा करके उसे कहा की बेटा हम चौपड खेलना चाहते है किन्तु यहाँ पर हार जीत का साक्षी कोई नहीं है.
अतः खेल के अंत में तुम हमे हार – जीत का साक्षी होकर बताना की हम में से कौन जीता और कौन हारा.
खेल आरंभ हुआ और देवयोग से तीनो बार पार्वती जी ही जीती जब बालक से पूछा गया तो उन्होंने शिव जी को विजय बताया| परिणाम स्वरुप पार्वती जी ने क्रोधित होकर उसे पांव से लंगड़ा होने और वहा के कीचड़ में रहकर दुःख भोगने का श्राप दिया.
बालक ने विनम्र भाव से कहा माँ मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया है| मेने किसी कुटिलता के कारण ऐसा नहीं किया है मुझे छमा करे और श्राप से मुक्ति का उपाय बताये.
तब ममता रूपी माँ को उस पर दया आ गई और कहा यहाँ नाग कन्याएँ गणेश पूजन करने आयेंगी उनके उपदेश से गणेश व्रत करके तुम मुझे प्राप्त करोगे| इतना कहकर वह कैलाश पर्वत चली गई.
एक वर्ष बाद श्रावण में वहां नाग कन्याये गणेश जी की पूजन करने आई नाग कन्याओ ने गणेश पूजन करके उस बालक को भी पूजा की विधि बताई उसके बाद बालक ने 21 दिन तक गणेश व्रत करके गणेश जी का पूजन किया.
तब गणेश जी ने उसे दर्शन देकर कहा मैं तुम्हारे व्रत से प्रसन्न हूँ मनोवांछित वर मांगो.
तब बालक बोला हे भगवन मेरे पेरो में इतनी शक्ति दे दो की में कैलाश पर्वत अपने माता पिता के पास पहुँच सकू और वह मुझ पर प्रसन्न हो जाये.
गणेश जी तथास्तु कहकर अंतरध्यान हो गये| बालक भगवान शिव के चरनों में पहुच गया| शिवजी ने उससे यहाँ तक आने के साधन के बारे में पूछा तब बालक ने सारी कथा शिव जी को सुना दी.
उधर उसी दिन पार्वती जी शिव जी से अप्रसन्न होकर विमुख हो गई इसके बाद शिव जी ने बालक की तरह 21 दिन का व्रत किया जिसके प्रभाव से पार्वती जी के मन में स्वतः ही शिव जी से मिलने की इक्छा जाग्रत हुई.
वह शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुंची यहाँ पहुच कर पार्वती जी ने शिवजी से पूछा हे भगवन आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिसके प्रभाव से में आपके पास भागी – भागी आ गई.
शिवजी ने गणेश जी का इतिहास उन से कहकर सुनाया तब पार्वती जी ने अपने पुत्र कार्तिके जी से मिलने की इच्छा से 21 दिन तक 21 – 21 की संख्यां में दूर्वा, पुष्प और लड्ड़ूओ से गणेश जी का पूजन किया.
कार्तिके जी ने भी यही व्रत विश्वामित्र जी को बताया विश्वामित्र जी ने व्रत करके गणेश जी से जन्म से मुक्त होकर ब्रम्ह्रिषि होने का वर माँगा| गणेश जी ने उनकी मनोकामना पूरी की ऐसे है श्री गणेश जी सबकी मनोकामना पूरी करते है.
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मेरे प्यारे गणेश भक्त 🙂 यह तो थी थोड़ी बहुत जानकारी गणेश चतुर्थी के बारे में, अगर आप भगवान गणेश जी के बारे में थोड़े बहुत शब्द बोलना चाहते हो तो आप कमेंट के माध्यम से हमारे साथ अपनी बाते शेयर कर सकते हो और हाँ अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इस आर्टिकल को सोशल मीडिया पर शेयर अवश्य करें. 🙂